ये कहानी हिंदुस्तान के उस इलाके की है-जहां ज़िंदगी का सबसे बड़ा संकट है- जल संकट..। लेकिन इस जल संकट के लिए प्रकृति का प्रकोप ज़िम्मेदार नहीं है। ..ज़िम्मेदार है सरकार और सिस्टम की नाकामी। ..आज ऐसे ही नाकारा तंत्र को जगाना है...उसे उठाना है...जल संकट की घंटी बजाना है..। जी हां, गांव में पानी की टंकी तो है... लेकिन टंकी में नहीं पानी है। ...और ये किसी एक गांव की नहीं...कई-कई गांवों की कहानी है। ..गर्मी अभी शुरू ही हुई है..लेकिन मध्य प्रदेश के कई गांव बूंद-बूंद के लिये तरस रहे हैं। ..तकरीबन सारे कुएं सूख चुके हैं। हैंडपंप भी हैं, लेकिन सरेंडर कर चुके हैं कि पाताल से पानी खींचकर नहीं ला सकते। ..हज़ारों लोगों की ज़िंदगी जल संकट से घिरी हुई है। .. गांववाले इस बदहाली के लिये सरकारी सिस्टम को कोस रहे हैं। ..इसलिये हम भी आज आपसे कह रहे हैं कि भयंकर जल संकट पैदा करने वाले इस सरकारी सिस्टम की घंटी बजाओ..। आज हम आपको मध्यप्रदेश के उन इलाकों में ले चलेंगे-जहां इंसानों को ही पीने का पानी नहीं मिल पा रहा,,,मवेशियों की तो बात ही छोड़ दीजिये। .. छोटे बच्चे हों..या बुजुर्ग..या महिलाएं। ..सबके के सब गड्ढों से गंदा पानी निकालकर पीने को मजबूर हैं। ..और ये गंदा पानी भी रोज़ एक संघर्ष के बाद मिलता है। ..उसके लिये दो से तीन किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है।...तब जाकर प्यास बुझ पाती है..। आप खुद देखिये 'हर घर नल से जल' के नारों के बीच ये संघर्ष..और हमारे साथ सिस्टम की घंटी बजाइये..। मध्य प्रदेश के सीहोर जिले का एक गांव बिशनखेड़ी..दूसरा गांव- खामलियां। ..दिल्ली-मुंबई में बैठे किसी व्यक्ति को ये नाम क्यों याद हों। ..ज़रूरी भी नहीं है..। ..लेकिन कमाल देखिये कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बैठे सरकार के मंत्रियों..और अफसरों को भी इनकी ख़बर नहीं। ..जबकि भोपाल में जहां से सरकार चलती है, वहां से इन गांवों की दूरी 50 किलोमीटर भी नहीं है। ..ख़बर होती तो ज़रूर मंत्री और अफसर यहां पहुंचते..बूंद-बूंद को तरसती इस प्रजा को देखते।